तब्दीलियां | The change

अब शाम नहीं होती

अब शाम नहीं होती
दिन देर से ढलता है और
थक कर सिमट जाता है रात के आगोश में
और रात, आँखों में नींद लिए
जगती है, बेसबब

याद है,
मौसमों के आने की इक दस्तक हुआ करती थी

शाम की नम हवा से फैलती ठंडक
और सुबह के कोहरे से उठती सिहर तक
इक ख़ुशनुमा सफर था मौसम के साथ

ज़र्द पतझड़ से खिली बसंत
और तपती लू से भीगे सावन तक
रुत बदलने की
इक आशना सी तरतीब थी

बे-तरतीब हो गयी हैं रुतें,
और बड़ी बे-तकल्लुफ हो गई है
मौसमों की आमद

इक नज़र चाँद पे भी रहती थी
उसके घटने बढ़ने और
पूरा होने की ग़र्दिश पर

चौदवीं का चाँद बुझ सा गया है
बाज़ारू रौशनी के धुंधलके
और इक गर्द की चादर में

कम्बख़्त,
अब तारे भी नहीं दिखते

और… तुम्हारी याद भी तो नहीं आती अब

अब शाम नहीं होती।



बे-तरतीब = Out of order
बे-तकल्लुफ = Informal 



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