तुम थीं...
कहीं ख्वाहिशों की फेहरिस्त में
किसी ग़ैर-वाजिब ख्वाहिश सी
इक अरसे से
तुम थीं
ख्वाहिश,
जिसके पूरा होने की
ना तो ज़िद्द थी
और ना उम्मीद
पर तुम थीं, मुसलसल
कहीं ख्वाहिशों की फेहरिस्त में
इक दिल-फरेब खवाहिश सी
और... इक अरसे से
तुम थीं
यह ख्वाहिश
कुछ इस तरह परवान चढ़ेगी
यह ख्वाब-औ-ख्याल में न था
और अब जब यह परवान चढ़ने को है
तो सोचता हूँ की तुम, मेहज़
मेरी ख्वाहिश तो नहीं
एक धड़कता दिल हो
एक महसूस करता ज़ेहन भी
एक देहकता जिस्म हो
एक मेहकती रूह भी
और ख्वाहिशें,
बहुत सी ख्वाहिशें भी तो होंगी
किसी की मिलकियत
और मेरी ख्वाहिश होने से परे
खुद को तलाशना
तो क्या हुआ गर मेरी ख्वाहिशों में
इक अरसे से तुम थीं
तुम, अपनी ख्वाहिशें जीना
कहीं ख्वाहिशों की फेहरिस्त में
किसी ग़ैर-वाजिब ख्वाहिश सी
इक अरसे से
तुम थीं
ख्वाहिश,
जिसके पूरा होने की
ना तो ज़िद्द थी
और ना उम्मीद
पर तुम थीं, मुसलसल
कहीं ख्वाहिशों की फेहरिस्त में
इक दिल-फरेब खवाहिश सी
और... इक अरसे से
तुम थीं
यह ख्वाहिश
कुछ इस तरह परवान चढ़ेगी
यह ख्वाब-औ-ख्याल में न था
और अब जब यह परवान चढ़ने को है
तो सोचता हूँ की तुम, मेहज़
मेरी ख्वाहिश तो नहीं
एक धड़कता दिल हो
एक महसूस करता ज़ेहन भी
एक देहकता जिस्म हो
एक मेहकती रूह भी
और ख्वाहिशें,
बहुत सी ख्वाहिशें भी तो होंगी
किसी की मिलकियत
और मेरी ख्वाहिश होने से परे
खुद को तलाशना
तो क्या हुआ गर मेरी ख्वाहिशों में
इक अरसे से तुम थीं
तुम, अपनी ख्वाहिशें जीना
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